बतला दो घर कब आओगे
बतला दो घर कब आओगे
हे परमवीर हे पराक्रमी,
हे शूरवीर हे नाथ मेरे,
एक बात कहूँ बतलाओगे,
बस इतना पूछ रही तुमसे,
बतला दो घर कब आओगे।
कब अपने नन्हें सपूतों को,
वीरों का पाठ पढ़ाओगे,
कब अपनी छाती लगा के तुम,
पदकों की चमक बढ़ाओगे,
कब घर में रखी वर्दी को,
पहने तुम शोभा बढ़ाओगे,
बस इतना पूछ रही तुमसे,
बतला दो घर कब आओगे।
कब अम्मा को अँधियारे में,
हाथों से दीया दिखाओगे,
कब बाबू जी की लाठी बन,
पूरा तुम गाँव घुमाओगे,
बस इतना पूछ रही तुमसे,
बतला दो घर कब आओगे।
कब अपनी छुटकी की राखी ,
कलाई में अपनी सजाओगे
कब होली के उन रंगों से,
दामन रंगीन बनाओगे,
कब दीवाली की रातों में,
हाथों से दीप जलाओगे,
बस इतना पूछ रही तुमसे,
बतला दो घर कब आओगे।
कब तुम विपरीत समय में फिर,
दुख मेरा बाँट हँसाओगे,
कब मेरी सूनी माँग को तुम,
पहले सा लाल बनाओगे,
बस इतना पूछ रही तुमसे,
बतला दो घर कब आओगे,
बस इतना पूछ रही तुमसे,
बतला दो घर कब आओगे।
