कब तक दागी कपड़ों को नज़रें झुका के छुपाओगी, कब तक मासिक धर्म को यूँ जिल्लत से सहते जाओगी...! कब तक दागी कपड़ों को नज़रें झुका के छुपाओगी, कब तक मासिक धर्म को यूँ जिल्लत से सह...
वो पावन खुद को हर माह करती है वो खुद ही जननी है वो पावन खुद को हर माह करती है वो खुद ही जननी है