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ख्वाब किसी का, सपना मेरा

ख्वाब किसी का, सपना मेरा

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रात ढले एक चंद्रमुखी को

अपने सपने आते देखा

उसने मुझको देखा

मैंने उसको नैन झुकाते देखा


घूम गई फिर धीरे धीरे

उसको नैन उठाते देखा

अल्हड़ सी और बेहद सुन्दर

दर्पण भी इतराते देखा


उस दर्पण में उसने मुझको

मैंने भी मुस्काते देखा

लट बिखराये आँखें प्यासी

उँगली दाँत दबाते देखा


आँखें प्यासी उस पानी की

आँसू बनकर बह निकले जो

जाने कितना रोई वो

ना नीर किसी ने बहाते देखा


कई दिनों से बिन परदे के

उसे देखने को आतुर था

यूँ तो उसको अन्दर बाहर

निसदिन बीच अहाते देखा


चंदा तो तारों के संग संग

नभ में रोज झिलमिलाता है

भ्रम गया तब हिलते डुलते

नैन कमर मटकाते देखा


निकल रही जब भवन

पतंगों को उस पे मँडराते देखा

पहले बायीं गली मोड़

फिर ओर कुए की जाते देखा


लगी ताकने सभी ओर

वह नहीं दिखा कोई ना देखा

पहली बार किसी नारी को

निर्जन बात बनाते देखा


धीरे धीरे त्रिवस्त्रों से

आँचल बाहर आते देखा

देख स्वयं आँचल शरमाई

मैंने भी शरमा के देखा


लगी नहाने तब देखा कि

पानी तो बेहद ठंडा था

दुग्ध बदन की उस युवती को

ठंडे नीर नहाते देखा


त्वचा मखमली ठंडा पानी

मिल जाये तो ठंडा तन हो

दहक रही थी गर्मी तन की

कई पल नीर बहाते देखा


वोल्ट चार सौ के ऊपर

चालीस कहाँ कम होने थे

झटपट नटखट कोमल तन को

कोमल वस्त्र छिपाते देखा


वापिस आते कई पतंगों को

फिर से मँडराते देखा

कई मनचलों को उनमें से

गैर मुखोटे पाते देखा


कई खड़े थे भेष बदलकर

फुसफुस पाउडर सेंट लगाये

कुछ को नैन चलाते देखा

कुछ को हाथ हिलाते देखा


चाल ढाल इतराते कुछ को

बालों हाथ घुमाते देखा

गई जिस तरह वैसी आई,

न उसने कुछ आते देखा


भवन पहुँच दर्पण के आगे

अंग-रंग बिखराते देखा

दर्पण से बतलाते देखा

मन ही मन इतराते देखा


दाँयें, बाँयें फेंक-फेंक कर

उसको केश सुखाते देखा

धीरे धीरे उसको मैंने

सब सिंगार सजाते देखा


सीधी आँख मिली मुझसे

जैसे पूछे, 'कैसी लगती हूँ'

कोमल, चंचल चितवन देखी

मन अपना ललचाते देखा


नजर लगी किस कर्मजले की

कुछ नहीं इसके आगे देखा

खुलीं आँख तब दर्पण देखा

होश ठिकाने आते देखा


दर्पण में अपनी भार्या को

आलस में अंगड़ाते देखा

बोली, 'जी कैसी लगती हूँ'

उसको भी इठलाते देखा


उसकी बातों से लगता

कि उसने भी कोई सपना देखा

सपने में विरहन को मानो

नैनन नीर बहाते देखा


मैं बोला जी सच बोलूँ तो

तुम सबसे सुन्दरतम हो

दिन में देखूँ, रात में देखूँ

तुम को सपने आते देखा


तुम्हीं को आँख मिलाते देखा

तुम्हीं को आँख दिखाते देखा

इतनी सुनकर मधुबाला को

मंद मंद मुस्काते देखा


जान बची औ लाखों पाये

मैंने जान बचाते देखा

चेहरे को शरमाते देखा

मन ही मन हरषाते देखा


सपनों से पहले अपनों के

आगे शीश झुकाते देखा

सपनों के रँग भर के जीवन

पल पल सुखद बनाते देखा...!




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