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Amar Adwiteey

Drama Inspirational

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Amar Adwiteey

Drama Inspirational

बाती - जाति संवाद

बाती - जाति संवाद

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बाती-बाती यूँ बात करें

जाती-जाती ना जात करें

इतना सुन जाती आती है

वह बाती से भिड़ जाती है


क्यों रोज-रोज तू जलती है

अन्धेरा मिटा न पाती है

तू स्वयं निरन्तर जलती है

पर औरों को भी जलाती है


देखो मैं भी तो जलती हूँ

माना खुद जल ही जाती हूँ

कुछ अंधकार को दूर भगा

उजला जीवन कर जाती हूँ


मैं जलकर ज्योति जलाती हूँ

तू सबका हृदय जलाती है

तू लम्बी है मैं छोटी हूँ

पर दुनिया तुझे लजाती है


तू भिन्न, भिन्नतर जाती है

मेरी नहीं कोई प्रजाती है


बाती के संग जले बाती

तो चमक दोगुनी दिखलाती

जाती के बगल रहे जाती

कब एक घड़ी किसको भाती


बाती से बाती मिलते ही

लम्बी बाती बन जाती है

तू मिलकर भी न कभी मिलती

ये दूनी ज्योति दिखाती है


जाती से जाती जलती है

बाती से बाती जलती है

ये जलकर बैर बढ़ाती है

वह रति को दूर भगाती है


तू मुझको क्या सिखलाती है

मेरी तो उत्तम जाती है

तू तो बस लेती खाती है

लेकर ठेंगा दिखलाती है


तू तो जल जलके मिट जाती

या जलते-जलते बुझ जाती

हल्का झोंका ही काफी है

पर पीछे मेरे आँधी है


मेरे तो पीछे तो पाँती है

बेटी-बेटा अरु नाती है

तुझको कब कोई अपनाए

जाती मुझको अपनाती है


बाती को जाती रौंद गई

जीते-जलते मन कौंध गई

ली जाती ने अँगड़ाई है

और बाती पड़ी दुखाई है


है कौन जलाए ये बाती

जो मैं भी दिखलाऊँ ज्योती

यदि हों मेरे बेटे-नाती*

तो मैं भी तुम से टकराती।।


*समर्थक, अनुयायी


(यह रचना दो शब्दों को बिंदु मानकर लिखी है, जाति और बाती। इन दोनों बिंदुओं को भावानुसार अलग-अलग प्रसंगों में व्यक्त किया है, जैसे जाति= जाति,अज्ञानता/भेड़चाल, जातिवाद और उसको बढ़ावा देने वाले तत्व। बाती= दीपक, लौ, उजाला, बुद्धिजीवी, सामाजिक और मानवीय मूल्यों के समर्थक। कविता प्रश्नोत्तर के रूप में आगे बढ़ती है। कृपया, जाति को जाती के स्वर में पढ़ें)


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