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Amar Adwiteey

Classics

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Amar Adwiteey

Classics

राजनीति का खेल अनोखा

राजनीति का खेल अनोखा

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बिना सिखाये सीख गए सब,

बिना पढ़ाये पढ़!

शहर छोड़कर निकले नेता,

गाँव, मोहल्ले, गढ़!


राजनीति का खेल अनोखा,

छुपन-छुपाई सा!

हँसते-हँसते ही देते हैं,

शीश काट या धड़!


कोशिश करके बन सकते,

इक जोरदार नेता!

लोग नाक रगड़ेंगे आगे,

पहले नाक रगड़!


कल तक उस दल में थे,

यह दल था दुर्गुणों भरा!

महकदार लगता है बेशक

अंग गए हैं सड़!


जागरूक जनता ही बदले

खुद अपनी किस्मत!

सदा मानिये निजी तोहफे,

गर्म धातु की छड़!


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