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Amar Adwiteey

Drama Others

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Amar Adwiteey

Drama Others

काला धनी उजला रहा

काला धनी उजला रहा

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चीज हर आधार से ही जोड़ दी सरकार ने

दिल्लगी थोड़ी बची थी छीन ली सरकार ने


आप डेटा मांगिये तो मुफ़्त में मिल जाएगा

रोटियां महँगी मगर की, आज की सरकार ने


बाप दादा की बदौलत कुर्सियां उनको मिली

लग रहा अपनी विरासत मान ली सरकार ने


देखने उनको लगे तो देखते रह जाएंगे

टोपियां फिर से बदल दी आप की सरकार ने


नित इरादों और वादों की हुई बरसात, पर

फूल गुलशन में खिलाये कौन सी सरकार ने


बात मन की एक ने की, दूसरे चुप ही रहे

तीसरे भोंके बहुत पर कब सुनी सरकार ने


जब लगा उनको फसेंगे अपने ही नेता अधिक

पॉलिसी ही रदद् कर दी सिर चढ़ी सरकार ने


नाम डिजिटल इंडिया का ले लिया धन जेब से

बैंक द्वारा फिर गिराई बिजली सरकार ने


जब सुना अच्छा लगा था नाम मेक इन इंडिया

बात, बातों में उड़ा दी राज की सरकार ने


ये फंसाते जा रहे हैं, वे हँसाते जा रहे

वास्ता रोटी से रखा कम किसी सरकार ने


अब अकेले दल किसी के बात बस की है नहीं

रोग गठबंधन लगाया गिर चुकी सरकार ने


एक गायों पर मरा तो दूसरा बकरी ईद पर

बात इंसा की कहाँ की अब किसी सरकार ने


जी रहा नासिर डरा सा और नंदू भी दुःखी

आग नफ़रत की लगाई सिरफिरी सरकार ने


फिर तलाशी जा रही है खास मुद्दे की जमीं

वोट में सीमित किया है आदमी सरकार ने


जो शिकायत दर्ज करने कल अदालत को गया

मंच पर बैठा लिया है दोहरी सरकार ने


बस चुनावों के समय लगता है बदलेगा वतन

किन्तु कब थोड़ी घटाई भुखमरी सरकार ने


आप अपने काम से ही काम क्यों रखते नहीं

हमको ये फरमान भेजा है नई सरकार ने


बन बड़े मासूम सबने कारनामे कर लिए

गैर इज्जत को उछाला फिर गिरी सरकार ने


पाप गंगा में नहाने से कहाँ धुलते सभी

खूब दौलत जो लुटाकर देख ली सरकार ने


फर्क मन्दिर की घंटियों या अज़ान से कुछ नहीं

फर्क सीनों में बढ़ाया मतलबी सरकार ने


नोटबंदी की मगर काला धनी उजला रहा

बात सारी कब बतायी भीतरी सरकार ने


खूब सारे चैनलों पर हो रही ये ही बहस

कब सुनी, अपनी हमेशा ही कही सरकार ने


रोज बनती एक गरीबी को घटाती पॉलिसी

पर जमीं पर कब उतारी है कभी सरकार ने


बोल ऊँचे बोलने को बोलते, पर देखिए

बात पूरी कौन सी की मुँह कही सरकार ने


कौन सी बच्ची खुले मन हँस रही अब खिलखिला

कुछ दरिंदों को सजा से छूट दी सरकार ने


जानते नेता सभी जनता की ताकत को मगर

जीत कर रंगीन चुनरी ओढ़ ली सरकार ने


काम धंधे की नहीं बातें करें वो आजकल

रोजगारी, रेजगारी माप दी सरकार ने


हर किसी को जीते जी मशहूरियत मिलती नहीं

दाद बिलकुल दी नहीं है काम की सरकार ने


सत्य है आषाढ़ की बारिश को जलना ही पड़े

किन्तु देखो कुछ रिवायत तोड़ दी सरकार ने


काम जो अच्छे किये हैं जिक्र तो करता चलूँ

सड़ चुके कानून की रद्दी करी सरकार ने


कौन खाना दे रहा अब दो दफा माँ बाप को

पेंशन बूढ़े जनों की खूब की सरकार ने


अन्नदाता देश का बेशक बहुत पीड़ित यहाँ

फिक्र उसकी पीढियों की ही न की सरकार ने


मेरी बातों पे यकीं आए तो नेता वो चुनें

सोच सबको साथ लेने की रखी सरकार ने


सोचते हैं नासमझ ये कुर्सियां हैं बाप की

जीत के फिर तो नज़र ही फेर ली सरकार ने


तुष्टिकारी जन्तु जग में हानिकारक हैं अधिक

कौड़ियों के भाव धरती बेच दी सरकार ने


कोई मजहब है बुरा ना जाति का होना गलत

बाँटना अच्छी सियासत देख ली सरकार ने


हैं मुकम्मल खुद कहाँ जो दूसरों से कह रहे

अपनी-अपनी रोटियां ही सेंक ली सरकार ने


नीम कलमें आम की देकर नहीं पीपल बना

सिर्फ सामाजिक जड़ें की खोखली सरकार ने


नाम के उपवास, पूजा और तीरथ हो गए

जो सियासत बेवजह ही ठूँस दी सरकार ने


तेरी वोटों से बने या फिर मेरे मतदान से

ध्यान सबका ही रखे सौगंध ली सरकार ने


खैरियत की बात की तो खैर! कहकर रह गए

बस अमीरों की कहानी ही सुनी सरकार ने


राजधानी से पहुँचता चार आना गाँव तक

खूब बाँटी हाथियों से चासनी सरकार ने


कौन सच्चा, कौन झूठा ये पता कैसे चले

लिस्ट लंबी जो दिखा दी हर किसी सरकार ने


है नहीं आलोचना, तारीफ की चिंता हमें

देश की हालत दिखी वो ही लिखी सरकार ने


लोग पन्नों में छपे पर हम दिलों तक ही रहे

एक रुपये की न बख्शी सबसिडी सरकार ने


आप को सब कुछ पता है देश की असली व्यथा

अपने जैसे सैकड़ों बकते, सुनी! सरकार ने




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