एक रात का रिश्तेदार
एक रात का रिश्तेदार
कल शाम से मेरे साथ था,
और वह बातों-बातों में,
दरवाज़े तक आ गया,
खाता- पीता भी साथ में ही था !
किन्तु मुझे आभास न था,
फिर तो उसने हद कर दी,
शयनकक्ष में घुस आया,
समझाने पर अकड़ गया !
मूड मेरा भी बिगड़ गया,
किसी को पता नहीं चले,
घर में ही नाक नहीं कटे,
दण्ड देने की कोशिश की !
हवा में घोलकर, उसको,
धोखे से जहर दे दिया,
और आश्वासन कर लिया,
सबेरे शीघ्र जागना था !
इसलिए जल्दी सोना था,
किन्तु लिए इरादा अटल,
जारी उसकी मनमानी थी,
आखिर औकात दिखानी थी !
बेशक झट से मर जाना था,
जब थोड़ा इधर-उधर गया,
मैंने समझा कि डर गया,
जब सीधे-सीधे वश न चला,
तो छदम् युद्ध पर उतर गया !
अब एक मैं था और एक वह,
पर कौतूहल बरकरार था,
चादर के भीतर समर था,
निहत्थे ही सामना किया !
जाने कब थकान असर कर गई,
और, मेरी आँख लग गई,
किन्तु मन अचेतन जूझता रहा,
मुझे हिलाकर पूछता रहा !
भुला खून की रिश्तेदारी,
आखिर अतिथि से झगड़ गया,
उसी उठापटक में जाने कब,
हाथ से हाथ रगड़ गया !
और मैं एक खूनी हो गया,
क्योंकि वह मच्छर मर गया,
मुझे एक फिक्र होने लगी,
लाश ठिकाने लगाने की !
दूसरे, खून-संबंधी को,
विधिवत दफ़नाने की,
यह उधेड़बुन जारी थी कि,
पड़ोसी का अलार्म बोल गया !
अर्थात सवेरा हो गया,
एक मामूली मच्छर ने हमें,
क्या से क्या बना दिया,
चैन से सोना था किन्तु,
सारी रात जगा दिया,
सारी रात जगा दिया !