STORYMIRROR

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

3  

Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Tragedy

खुदगर्जी

खुदगर्जी

1 min
14



क्या आसमान औऱ क्या धरती हर जगह ही है,

स्वार्थ की भर्ती अब किसको हम इल्जाम दे,

हर और दिख रही है खुदगर्जी हर तरफ दिखती बेनूर आंखे,

सब के दिल में स्वार्थ की बातें,मदद तो आज दूर की बात रही,

बिना अर्थ के नही होती मुलाकाते

क्या आसमान और क्या धरतीहर ओर दिख रही है,खुदगर्जी

लोगो ने दूसरों की ज़मीं को,अपने नाम की कर ली

फिर भी कोई तो किनारा होगा,जहां पर कोई तो हमारा होगा,

इस उम्मीद पे बहते दरिया में,हमने पतवार तेज कर दी,

जानता हूं और ये मानता हूं,में दरिया डूब भी सकता हूं

पर डूबने से पहले,खुद को जिंदा कर सकता हूंख़ुद को बचाने, 

स्वार्थ को हराने,हमने दरिया में छलांग कर दी!



Rate this content
Log in