खुबसुरत काया
खुबसुरत काया
खुदा ने तुझ में बनायी ऐसी काया है,
तेरी ही खुशबुओं से जहां के फूलों को महकाया है।
चाँद ने तेरे दर पर आकर सर झुकाया है,
सितारों को भी आखिर तेरा ही रूप भाया है।
तुझ से ही फिज़ाओं में ऐसा नूर छाया है,
बहारों ने मिलकर मंगल गीत गाया है।
हूर तू कोहिनूर तू, तू ही मन की माया है,
तेरे बेइंतहा हुस्न ने परियों को भी शरमाया है।
कायनात की सुंदरता को तुमने खुद में समाया है,
अप्सराएं भी जल जाएं ऐसा रूप पाया है।
इस नाचीज दिल को हमने कितना समझाया है,
मानता नहीं मेरी ये तो तुम पर ही आया है।