निगाहों से गुनाह
निगाहों से गुनाह
वो ये गुनाह सरे-आम करते हैं,
निगाहों से अपनी कत्ल-ए-आम करते हैं।
चला कर तीर नयनों से,
इल्जाम हमारे नाम करते हैं।
गिरा कर हूस्न की बिजलियाँ,
क्यों जमाने को बदनाम करते हैं।
वो ये गुनाह सरे-आम करते हैं,
निगाहों से अपनी कत्ल-ए-आम करते हैं।
चला कर तीर नयनों से,
इल्जाम हमारे नाम करते हैं।
गिरा कर हूस्न की बिजलियाँ,
क्यों जमाने को बदनाम करते हैं।