खताएँ
खताएँ
आकर्षित करती तुम्हारी
गेसूओं की खुशबू में खो कर
कुछ खताएँ करना चाहता हूँ.!
मेरी चाहत की घटा बरसे तुम पर,
बादामी आँखों में खो जाऊँ,
तेरी नाभि पर अपना नाम लिख दूँ
सुगंधित तन को सहलाते
इबादत की चरम को छू जाऊँ.!
कायनात है तुम्हारे
माहताब से पूरी रोशन,
चाँद का एक दुधिया टुकड़ा
तुम्हारे आँचल में रख दूँ,
हरसिंगार की छाँव, या ज़ाफ़रानी ज़र्दा..!
आगोश की पनाह में आ जाओ
तेरी महकती साँसों से चुंबन
चुराकर दिल के कोने में भर लूँ .!
अपलक देखता रहूँ तुम्हें ताउम्र
वो सब खताएँ कर लूँ
करते है जो आशिक अपने महबूब संग
रोमांस की हदों को चिरते.!
हया की परिधि से
निकलकर गर तुम दे दो इजाज़त,
तुम्हारे हर नखरों को
सर आँखों पर धर लूँ,
सौंप दो समर्पित सी तन की ड़ाली,
आगोश में छुपकर एक हो जाओ,
तुम में समा कर तुम्हारे
बदन में अपनी जाँ रख दूँ।

