खत (भाग-१)
खत (भाग-१)
मेरे दिल के कितने क़रीब थे वो
सिर्फ़ जानते हैं वही खत
जिन्हें पढ़ने के लिए लालायित रहती थीं आँखें
और न मिलने पर दिल करता था धक धक
बीत गये ख़तों के जमाने, सब कहते हैं यहाँ
पर इन बीते दिनों में था कुछ ख़ास, जो जानता है जहाँ
लौट कर तो नहीं आते, बीते जमाने पर
हमारी यादें तो लौटकर ले जाती हैं हमें वहाँ
सिलसिला शुरू होता था सिर्फ़ आँखों से
और मंज़िल तक पहुँचने में काम आते थे ये खत
पर अगर किसी शुभचिंतक के हाथ लग गया कोई एक
तो या प्रेमी, जोड़ा बनता था या स्वाहा कर दिए जाते थे खत
