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Rashi Singh

Drama Fantasy

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Rashi Singh

Drama Fantasy

खजाना मेरा

खजाना मेरा

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किताबों के सिवाय कुछ खरीदा ही नहीं

लोग हँसते रहे हमको देखकर

कभी मन की

बात को किसी ने पढ़ा ही नहीं ।


चंद चाँदी के सिक्के जमा कर न सके हम

लोग दौलत के ढ़ेर पर बैठकर गरीबी को अलविदा कर न सके ।


शब्दों की दूनियाँ में रम गयी है रूह मेरी

हँसते हैं दिल से अब हम

शिकवे किसी से रहे ही नहीं ।


चंद कागज के पन्नों पर एहसासों की दौलत बिखेर दी

कौन कहता है

हम आगे बढ़े ही नहीं ।


जब कहूँ अलविदा ए-जहाँ में तुझे

दुनियाँ पहचाने मेरे शब्दों से मुझे

आरजू अब और कुछ भी नहीं ।


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