खजाना मेरा
खजाना मेरा
किताबों के सिवाय कुछ खरीदा ही नहीं
लोग हँसते रहे हमको देखकर
कभी मन की
बात को किसी ने पढ़ा ही नहीं ।
चंद चाँदी के सिक्के जमा कर न सके हम
लोग दौलत के ढ़ेर पर बैठकर गरीबी को अलविदा कर न सके ।
शब्दों की दूनियाँ में रम गयी है रूह मेरी
हँसते हैं दिल से अब हम
शिकवे किसी से रहे ही नहीं ।
चंद कागज के पन्नों पर एहसासों की दौलत बिखेर दी
कौन कहता है
हम आगे बढ़े ही नहीं ।
जब कहूँ अलविदा ए-जहाँ में तुझे
दुनियाँ पहचाने मेरे शब्दों से मुझे
आरजू अब और कुछ भी नहीं ।