चंद कागज के पन्नों पर एहसासों की दौलत बिखेर दी चंद कागज के पन्नों पर एहसासों की दौलत बिखेर दी
सबकुछ देखते हुए समझते हुए भी धृतराष्ट्र और गाँधारी। सबकुछ देखते हुए समझते हुए भी धृतराष्ट्र और गाँधारी।
आज वो डरना नहीं चाहती उसने अंडे दिए हैं, आज वो डरना नहीं चाहती उसने अंडे दिए हैं,