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ख़्वाहिशों का बोझ

ख़्वाहिशों का बोझ

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किताबों के बोझ से भी ज़्यादा है

माँ बाप की ख़्वाहिशों का बोझ

बेकार है बार बार नीचा दिखाकर

ऊपर उठाने की कोशिश


खुश हो जाइए उसकी काबिलियत से

क्यों चाहिए नब्बे परसेंट से ही ऊपर

बचपन गीली मिट्टी सा है

जैसा ढालोगे ढल जाएगा

पर रहे याद "दिये" की सी मिट्टी में घड़े नहीं बना करते


थमाइये नन्हे मुन्हे हाथ में उसके शौक की डोर

फिर देखिए कितनी ऊंची उड़ती है मन की पतंग

मन लगता है गायकी में तो गायक ही बनेगा

माँ बाप के डर से सचिन नहीं बना करते


फिर यह भी तो सोचिए, गर सब बन ही गये

इंजीनियर, डॉक्टर, ऑफिसर

सहयोग के लिए मैकेनिक, कंपाउंडर भी तो चाहिये

इंजीनियर मैकेनिक का काम व डॉक्टर कंपाउंडर का

काम नहीं किया करते


कहाँ खुश हैं डॉक्टर इंजीनियर भी अपनी ज़िंदगी से

खुश तो हम होते थे अपनी अमीरी देखकर

जब बारिश के पानी मे कागज के जहाज़ चला करते थे।

डॉक्टर इंजीनियर तो बारिश के पानी से

भीगने से बचने के लिए सौ जतन किया करते हैं।।


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