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Birendra Nishad शिवम विद्रोही

Children Stories

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Birendra Nishad शिवम विद्रोही

Children Stories

लड़के भी रोते हैं

लड़के भी रोते हैं

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घर में भले ये लाड़ले बेटे, दुलारे भाई, 

व प्यारे पति हैं, मगर बाहर मजबूर होते हैं

हाँ जी, लड़कियाँ ही नहीं

लड़के भी रोते हैं, जब ये अपनों से दूर होते हैं।


जेहन में इनके माँ-बाप की दवाई का,

बहन की सगाई का, और

बेटे-बेटी की पढ़ाई

का ख्याल होता है

दिल में इनके, बीबी बच्चों के 

प्यार का अरमान होता है

मगर, जिम्मेंदारियों के आगे, ये मजबूर होते हैं

हाँ जी, लड़कियाँ ही नहीं

लड़के भी रोते हैं, जब ये अपनों से दूर होते हैं।


लड़कियाँ अपनो को छोड़कर

अपनों के पास होती हैं

बाप के बदले ससुर, तो

माँ के बदले सास पाती हैं

अपनों की कमीं को, अपनों से पूरा कर जाती हैं

पुराना घर छोड़कर, ये नया घर सजाती हैं

मगर लड़के शहर दर शहर घूमकर भी

घर से महरुम होते हैं

हाँ जी, लड़कियाँ ही नहीं

लड़के भी रोते हैं, जब ये अपनों से दूर होते हैं।


घर में भले ये जली रोटी व साग-भाजी में

कमी खोजते हैं

मगर घर से बाहर, पाव-भाजी व वोडा-पाव

से पेट भरते हैं

थोड़े से पैसे बच जायें

हर जतन करते हैं

दिन की थकान के बाद भी

चंद पैसों के लिए, शाम में, बेगार करते हैं

और हाँ, कभी कभार खाली पेट सोते हैं

हाँ जी, लड़कियाँ ही नहीं

लड़के भी रोते हैं, जब ये अपनों से दूर होते हैं।


गाँव घर की गलियाँ, इनके बिन भी सूनी होती हैं

दोस्तों को छोड़ने की, इन्हें भी मजबूरियाँ होती है

घर बनाने की धुन, 

आवारा है, की बोली सुन,

भटकते हैं, यहाँ से वहाँ ये

काम की तलाश में

वरना क्रिकेट का बैट, गुल्ली का डंडा

जामुन का पेड़, आम की मिठास 

इन्हें भी याद होते हैं

हाँ जी, लड़कियाँ ही नहीं

लड़के भी रोते हैं, जब ये अपनों से दूर होते हैं।



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