कहाँ है भेदभाव
कहाँ है भेदभाव
जब कोई पूछता है मुझसे
कहाँ है भेदभाव संविधान में?
मेरी निगाहों में धंस जाती हैं
सरसराती खाली सड़कों पर दौड़ती
अमीर बच्चों से भरी बसें!
और दूसरी ओर पैदल चलते
हज़ारों मजबूर मजदूरों की बेबस आँखे!
शर्म से झुक जाता है सर!
देखकर
बलात्कार पीड़िता को बिलखते हुए
न्याय के मंदिर में भी
और अपराधी सीना तानकर
निकल जाता यहाँ से
घूरते हुए पीड़िता और
इस मंदिर के देवता को भी!
एक ओर भव्य शादी समारोह में
लुटाये जाते हुए लाखों-करोड़ों रुपये,
और फेंकते हुए बिना चखा सैकड़ो मन खाना!
दिख जाता है,
वहीं दूसरी ओर
पेट की तपती आग को बुझाने के लिए
एक बेबस,
खोजता हुआ केले के छिलकों के ढ़ेर से
एक सही सलामत केला!
दूल्हा बना एक दलित भाई,
ताकता रहता है किसी ऐसे सख्स को
जिसके कांधे पर हाथ रखकर पूँछ सके?
भाई! यहाँ घोड़े की सवारी वर्जित तो नहीं!
वहीं दूसरी ओर
निकल जाती हैं
घोड़े ही नहीं हाथियों से
सुसज्जित बारात!
माथे पर तिलक और हाथ में लिए भाला
दिखाते हुए ठेंगा कानून को!
चीखती है भीड़,
गर्व से कहो हम हिन्दू हैं!
वहीं दूसरी ओर
खुद के बच्चे के दूध के लिए
गाय खरीदते हुए
एक मुसलमान सोचता है!
यह किसी कानून का उल्लंघन तो नहीं!
