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Birendra Nishad शिवम विद्रोही

Abstract

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Birendra Nishad शिवम विद्रोही

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भटकते राम

भटकते राम

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जब तुम देख रहे थे

डीडी पर

वन-वन भटकते राम को।


हम जोह रहे बाट 

उन पदचिन्हों की उन्ही वनों में,

जिन पर मिल था

उन्हें सहारा,

नदियों में पानी,

हरे-भरे फलदार वृक्ष,

जिनसे भरा था

उनका पेट।


मिली थी उनको छाया

नहीं मिल रहा हमें,

अब उन नदियों में 

पीने का पानी,

उन वृक्षों पर,

खाने के फल।

हाँ-हाँ, मिल रहे हैं,


नदियों पर

पानी की जगह रेत के मैदान,

उन पर सूखती फसलें,

पतों रहित पेड़,

ऊँचे ऊँचे मिट्टी के टीलें।


उन्हें मनाही थी,

बस्ती में घुसने की,

बिल्कुल हमारी तरह।


संकट के समय

उन्हें मिली सहायता,

पेड़-पौधों पक्षियों से

हमें भी मिल रही

कुछ-कुछ।


उन्हें सहायक 

भालू बंदर मिले

हमें इनकी संतानों

से शिकायतें।

गर मानव के पूर्वज

बंदर हैं !


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