सर्द रात
सर्द रात
सर्द रात और एक दीये का सहारा
धुन्ध है राहों में आँखों तक
यूँ ही क्या कटेगी, है कोई शक
ये जीवन की आस फिर दुबारा
सर्द रात और एक दीये का सहारा
मन मनचले न इन्तजार चुने
बढ़ाते हैं कदम चादर से दूने
समझाए कौन वादी भी मौन
कहाँ तक राह ,जानता है कौन
आसमां सितारे गिने या देखें नजारा
सर्द रात और एक दीये का सहारा
रात साये भेद करना मुश्किल में
है अकेला या है भरी महफिलें में
तर्क ये जीवन का अंत तक हल नहीं
कुछ अधूरे कुछ छूटे कुछ का पहल नहीं
कल फिर चलना है ये सफ़र तुम्हारा
सर्द रात और एक दीये का सहारा
