गुलाबी चेहरा
गुलाबी चेहरा
करे दीदार कैसे उस भरी सूरत शबाबी से
ढ़की रहती वही सूरत मगर उसकी नक़ाबी से
कभी मिलता नहीं तन्हा मुझे वो ही गली में है
करे कैसे बातें उस मुखड़े वाली जो गुलाबी से
लगा इल्जाम मुझपर वो गया झूठे फ़रेबी के
मुझे यारों नहीं उम्मीद थी ऐसी ज़नाबी से
वफ़ा से कर गया इंकार मुझको वो ही बेगैरत
दुखी मेरा हुआ है दिल उसी की ही ज़वाबी से
मिलाया हाथ उससे यूँ नहीं है रब खफ़ा होगा
नहीं रखता कोई भी वास्ता मैं तो शराबी से
उसी का हाले दिल कैसे पूछे अब मगर आज़म
हुई बातें न उससे फ़ोन की यारों खराबी से.
