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HARIOM SULTANPURI

Abstract

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HARIOM SULTANPURI

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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आवाज दे के उन को बुलाता ही रह गया।

वे भीड़ में गुमे मैं अकेला ही रह गया।


वो लोग पाल कर के बुराई खुशी हुए।

जिन के भले की बात मैं करता ही रह गया।


वादा किया था आने का पर आए वो नहीं।

मैं खूब उनकी राह को तकता ही रह गया।


बातें फरेब छल की कही आपने बहुत।

विश्वास अपने बीच हटा सा ही रह गया।


कर के विदाई लोग सभी जिसकी आ गए।

वो शख्स उस की याद में खोया ही रह गया।


उम्मीद में सुखों की रहा भोगता जो दुख।

आँखों में झूठे ख्वाब सजाता ही रह गया।


विपुल उड़े हैं छोड़ परिंदे जिसे सभी।

ऐसा फँसा वो जाल में फँसता ही रह गया।


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