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Mukesh Bissa

Abstract

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Mukesh Bissa

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लोग भी बदलते हैं

लोग भी बदलते हैं

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मौसम के साथ लोग भी बदलते हैं

तूफानों के बीच हम भी संभलते हैंं


उफनता सागर तो बादलों का क्या कसूर

देख धरती की गर्मी वे भी पिघलते हैं


जल के मरते परवाने देख शमा को भी

ख़ाक में ख़ुद को मिला इश्क़ करते हैं


कर चुके जिसकी पूजा लाखों दफ़ा  

उस ख़ुदा को बेरहम हम कहते हैं


देखकर हमको चटक जाते थे शीशे

शीशे के बिन हम आखिर संवरते हैं


काली रातें करते हैं रौशन अपनी रचना

चाँद को अब उसके लफ़्ज़ों में यूँ ढालते हैं।


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