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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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सीता की खोज

सीता की खोज

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लौट रहे थे जब राम तब

लक्ष्मण को रास्ते में देखा,

तत्क्षण मन में आशंकाओं के घन 

चेहरे पर छाई चिंता की रेखा।

भागे-भागे कुटिया पहुँचे दोनों भाई


सीता कुटिया में नहीं मिली

हो गए सशंकित और उदास।

व्याकुल राम होकर अधीर

पेड़, पौधों से पूछ रहे,

फूल ,डाल और पत्तों से

सीता का पता थे पूछ रहे।


मानव- सम व्याकुल हुए प्रभु

जब सीता का राम से हुआ विछोह,

जगतपति की लीला देखो

उपजा मन में पत्नी का मोह।


करते विलाप और पूछ रहे

पशु- पक्षी, भौरों, कलियों से

सीता कहाँ खो गई है

पूछें नदियों, सरोवरों से।


विह्वल प्रभु चलते- चलते

पहुँचे घायल जटायु के पास,

राम- राम, रटते- रटते 

पूरी हुई जटायु की आस।


सरल भाव से उनके शरीर पर

फेरा प्रभु ने हस्तकमल,

अशक्त शरीर की पीड़ा गुम

और आ गया आत्मबल।


हाथ जोड़ बोले गीधराज

नाथ! सिया का हुआ हरण,

करके मेरा अंग भंग

दक्षिण दिशा में ले गया रावण।


बस अटके थे मेरे प्राण

संदेश सुनाने को व्याकुल थे,

मेरे शरीर को छोड़ प्राण

अंतिम यात्रा को आतुर थे।


अब काम मेरा पूरा हो गया

अब प्रभु मुझे आज्ञा दीजै,

कुछ भी करके नाथ आप

सीता का पता लगा लीजै।


प्रभु की गोद में गीधराज ने

छोड़ दिए तब अपने प्राण,

मुक्त हुए भव बंधन से

करके प्रभु को अंतिम प्रणाम।


जाते- जाते रटते रहे जटायु

राम, राम, श्री राम, श्री राम,

अमर हो गये गीधराज

अमर कर गए अपना नाम। 


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