STORYMIRROR

Dr. Anu Somayajula

Abstract

4  

Dr. Anu Somayajula

Abstract

सुपरमैन

सुपरमैन

1 min
369

मेरे नन्हे हाथों से

मंदिर में घंटी बजवाते

डगमग मेरी चाल थामने

ख़ुद घुटनों पर हो जाते

आंखें नम हों इससे पहले ही

चिड़िया, कौआ, कुत्ता, बिल्ली दिखला

मुझे हंसाते

पापा


पल में घोड़ा

पल में हाथी, बंदर

होते कितने खेल निराले

कंधे पर बिठला कर

बाज़ार घुमाते, मेला दिखलाते

ज़िद पूरी करते, लेकिन आंखों की

भाषा पढ़वाते

पापा


चलते- चलते गिर जाने पर

मुस्काते, कहते

गिरना, गिर कर उठना, उठ कर चलना 

जीवन का खेला है

ठोकर से सीख न लोगे जब

हंस देगा तुम पर राह पड़ा पत्थर भी तब

हरदम कहते

पापा


झुके हुए कंधे हैं, बुझी - बुझी सी आंखें

घुटनों के बल अब बैठ न पाते

घोड़ा बंदर बन ना पाते

चलते हैं अब डगमग - डगमग

गिरते, फ़िर उठ ना पाते

चुका चुके जीवन अपना मुझको 

सुपरमैन बनाते पापा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract