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Shravani Balasaheb Sul

Abstract

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Shravani Balasaheb Sul

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वाकिफ

वाकिफ

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सितारों की चमक से वाक़िफ़ हैं चाँद

पर भाता है उसे काली धरती का रूप

बादलों की छाव से अंजान नहीं धरती

पर मोह लेती मन उसका सूरज की धूप


फूलों को पता हैं कि जड़ों ने संभाला है

फिर भी काँटों को ही दिल के करीब रखा है

भँवरों को खबर हैं कि अकड़ती हैं कलियाँ

फिर भी तितलियों को छोड़ कलियों को देखा है


सुना हैं नदियों ने कि खारा हैं समंदर

मगर मदहोशी से बहती हैं उसी से मिलने

समंदर को लुभाती किनारे की रेत

मगर वह चल पड़ी पवन संग झूलने


समझता हैं शाम मीरा की दीवानगी

पर हृदय तो कब का राधा के नाम हैं

राजा की रानी नहीं कान्हा की जोगन बन गई

मीरा को हर्ज नहीं कि राधा का शाम हैं



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