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Gurudeen Verma

Abstract

4  

Gurudeen Verma

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आप ऐसा क्यों सोचते हो

आप ऐसा क्यों सोचते हो

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आप ऐसा क्यों सोचते हो,

कि मैं एक पापी और मुजरिम हूँ ,

हिंदुस्तान में पवित्र होना चाहता हूँ,

जिंदगी के नाम पर कलंक हूँ ,

दाग मैं यह मिटाना चाहता हूँ,

सबकी जुबां पर एक पहेली हूँ ,

जवाब इसका मैं देना चाहता हूँ।


धर्म की किताब में नास्तिक हूँ मैं,

परिभाषित इसको करना चाहता हूँ ,

इसकी कहानी और वजह है क्या,

यह अपनी कलम से लिखना चाहता हूँ ,

बदनसीब हूँ जन्म से मैं यहाँ,

ख्वाब सच करना चाहता हूँ मैं।


एक गरीब का हमदर्द बनकर,

जीना मरना चाहता हूँ मैं,

निर्वासित हूँ इस वतन में,

मुकाम अपना बनाना चाहता हूँ,

अनजान और अजनबी हूँ यहाँ,

महशूर मैं होना चाहता हूँ।


मिलेगा मुझको सभी का प्यार,

दिल सभी का जीतना चाहता हूँ,

अंतर्मुखी हूँ मैं स्वभाव से,

बेबाक सब कुछ कहना चाहता हूँ ,

करते हैं मुझसे यहाँ सभी नफरत,

आप ऐसा क्यों सोचते हो।


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