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HARIOM SULTANPURI

Abstract

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HARIOM SULTANPURI

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"प्रेम पथिक"

"प्रेम पथिक"

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जब से निकला हूं मैं घर से

राहें अब तो थकती नहीं है

लगता है दिल का भोलापन

सांस यह मेरी सुनती नहीं है


प्रेम पथिक है चलती राहें

कौन कहे कुछ सोचा नहीं है

पनघट से जब जब मैं निकली

राहों में छेड़े मुझको कन्हैया

कैसे कर दूं आकर शिकायत

सुन लो हे यशोदा मैया...

प्रेम की अभिलाषा है मुझ में

प्रेम जगाया है कान्हा ने

कैसे कर दूं मैं आकर के

प्रियतम की कुछ गलती बुराइयां...

कान्हा से जो लगन लगी है

प्राणों से प्यारे लगते हैं

जग सारा माने प्रभु तुझे

वो प्रियतम हमारे लगते हैं

पिया कहूं या प्राण पियारे..

जो कह दो सब कुछ कम है

तेरे बिन ए मोहन प्यारे

आंखें मेरी अब तक नम हैं।


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