प्रेम
प्रेम
रोको, टोको, चाहे मन पर बाँध लगाओ
चाहे मन को सीमाओं में बाँधे जाओ,
जाने अनजाने हृदय में प्रस्फुटित,
प्रेम रूपी बीज का मन में अंकुरण पाओ।
कभी ताकत बन सारे मुश्किल तोड़ूं,
कभी हौसला बन ख़ुद को मैं जोड़ूँ,
मैं प्रेम कभी हिम्मत, हौसला और शक्ति,
कभी कमजोरी बन हालातों से मुंह मोडूँ।
कभी फूल बन मन को सुवासित कर जाऊँ,
मन का हर कोना कोना मैं महकाऊं,
कभी शूल बनकर जीवन पथ में
अनेकों तकलीफें मैं यूँ ही लेकर आऊँ।
कभी तपती धूप में मैं बारिश की बूँदें
बनकर तन मन को शीतल कर जाऊँ।
कभी भीषण ठंडी में ओलावृष्टि कर
प्राण लेने को आतुर हर हाड़ को मैं कंपाऊँ।
मैं प्रेम अनोखा हूँ मैं अंदाज निराला,
चुपके से आकर के दिल में पैठ जाऊँ।
नहीं कोई पूर्व योजना, नहीं चले दूर रहने की भावना,
हर हाल में मैं जीवन में उथल पुथल कर जाऊँ।