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निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

Tragedy

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निशान्त "स्नेहाकांक्षी"

Tragedy

ख़ामोशी बड़ी सताती है

ख़ामोशी बड़ी सताती है

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चर्चा बड़े जोरों की थी, 

बड़े आवाज़ों के शोरों की थी, 

हमने ख़ामोशी अपना ली, 

शोरों में अपनी आवाज़ दबा दी, 


अगले पल चर्चा ,मेरे चुप्पी पर थी, 

गुरुर हूँ मैं, इस अर्जी पर थी! 


ये ख़ामोशी कितने गुल खिलाती है, 

शांत रहें जो कुछ पल तो,मगरूर बना जाती है! 

फिर दो लफ्ज़ जुबाँ से जो फिसले, 

भरी महफ़िल में बेग़ैरत कर जाती है, 


कभी कभी भारी आवाज़ों को, 

रेत सी खस्ता कर जाती है, 

अक्सर महफ़िल में बिन बोले ही, 

शंख-नाद कर जाती है, 


अनबूझ विचित्र सी चुप्पी, 

अक्सर बहुत सताती है!


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