ख़ामोश सा चांद
ख़ामोश सा चांद
हर दिन हर पल
महकते गुलाब की तरह
कुछ यादों को संभाल रखा है
ख़्वाब की तरह
जो छूट भी रहे हैं,
कुछ टूट भी गए हैं
मगर समेटा है दिल में
हर बार आस की तरह
बिखरी सी चांदनी में,
तारों की बरसात में
चुप था जाने चांद क्यों,
अपने ही एहसास में
चांदनी भी मानती रही
मगर चांद ख़ामोश था
जाने क्या खोया था उसने
कि नहीं कुछ भी होश था
चली गई चांदनी भी
तारे भी छुप गए
चांद उदास था फिर भी
सब उसे अकेला छोड़ गए
ना समझा चांद कुछ
उठा और फिर चल पड़ा
देखने को रास्ता
था वो फिर नई डगर चल पड़ा।
