मां मेरी दुनिया
मां मेरी दुनिया
कहने को तो मां एक छोटा सा शब्द है
मगर इसमें हम सबकी पूरी दुनिया बसी है
गमों की कोई औकात नहीं रह जाती
जब मां मुस्कुराकर हमारी ओर देखती हैं
अक्सर ही मां कहती हैं कि मैं उनकी तरह हूं
पर मां के आगे मेरी कोई हैसियत नहीं है
मेरी हर गलती को नज़रअंदाज़ कर देती हैं
कभी समझाती हैं तो कभी डांट भी देती हैं
कभी जब ये दुनिया समझ नहीं आती
तो प्यार से मुस्कुराकर
हर सवाल का जवाब दे देती हैं
जब उदास होती हूं तो मां पूछ ही लेती हैं
कि मैं परेशान क्यों हूं
मेरे बिन कहे ही दिल का हाल जान लेती हैं
सब कहते हैं मैं मां की तरह दिखती हूं
उनकी परछाई हूं मैं
मां का ही दूसरा रूप बनकर
दुनिया में आई हूं मैं
पर मां की तरह मैं कभी बन नहीं सकती
मां जन्नत हैं खुशियों की
तो जाने कितनी बुराई हूं मैं
मां तब भी भरोसा करती हैं
जब सब मेरी गलती गिनाते हैं
मां ढाल बन जाती हैं मेरी
जब सब आँखें दिखाते हैं
हिम्मत अगर है दुनिया से लड़ने की
तो बस मां की वजह से है
है मेरा भी कुछ वजूद जहां में
तो बस मां की वजह से है
मां के लिए जितना भी लिखूं
हमेशा कम ही रहेगा
मां के प्यार को परिभाषित
भला कौन कर पाएगा।
