बेसहारे हम आज भी हैं
बेसहारे हम आज भी हैं
गम के साए में कुछ उजाले आज भी हैं
होंठों पर मुस्कुराहट के नजारे आज भी हैं
बस तो गई महफिल फिर यारों की
मगर बेसहारे हम आज भी हैं
मिली जो महफिलें हमें वो खुदा की खुदाई थी
वरना वक्त के हराए हारे हम आज भी हैं
तकदीर का रोना रोने से होता कुछ भी नहीं
हम खुद से बातें करके मुस्कुराते आज भी हैं
कुछ पागलों सी हरकतें हो गई हैं तो क्या
बचपने में ही ज़िंदा हम आज भी हैं
शरारतों का सिलसिला है तो कुछ नादानियों का है
रो कर हंसने का हुनर सीखते हम आज भी हैं
ज़िंदगी की रवानी है बहुत कुछ सिखाएगी
मगर सीखने की हद तक तैयार हम आज भी हैं
गमों और खुशियों का लेखा जोखा है ज़िंदगी
मगर हर हाल में मुस्कुराने का हुनर हममें आज भी है।
By. Nisha yadav "Shabdanshi" ✍️
