नारी यूं ही नहीं नारी कहलाती है
नारी यूं ही नहीं नारी कहलाती है
मौत के मुंह में जाकर
ज़िंदगी ले आती है
नारी यूं ही नहीं नारी कहलाती है
रचती है इतिहास,
इतिहास बदल भी जाती है
नारी यूं ही नहीं नारी कहलाती है
ज़िम्मेदारियों को सिर पर लेकर भी
हर रिश्ता बखूबी निभाती है
नारी यूं ही नहीं नारी कहलाती है
खुद की परवाह ना करके
अपनों को खुशियां दिलाती है
नारी यूं ही नहीं नारी कहलाती है
त्याग समर्पण और बलिदान की
हर रस्म वो निभाती है
नारी यूं ही नहीं नारी कहलाती है
घुट कर जीती हो चाहे खुद
अपनों की मुस्कान ढूंढ लाती है
नारी यूं ही नहीं नारी कहलाती है
घर की रौनक बनती है
तो आंगन को महकाती है
नारी यूं ही नहीं नारी कहलाती है
दर्द की हद से गुज़र कर
जीवन दान दिलाती है
नारी यूं ही नहीं नारी कहलाती है।
