कभी।
कभी।
कभी परछाई सा दिखता था आईने में
आज धड़कन सा, धड़कता है सीने में।
कभी मेरे लबों पर अश्कों सा थिरकता था
आज रेगिस्तान है आँखों के मदीने में।
कभी मेरे जिस्म में उसकी रूह का राज़ था
आज इसके जाने से सन्नाटा है इस जीने में।
कभी ज़िंदगी उसकी साँसों की कर्ज़दार थी
और आज फैसला होगा अलग -२ जीने में।
कभी तूफानों से भी हमने दो हाथ किये थे
और आज मज़बूर उछलों से हार पीने में।