खामोश बैठे हैं
खामोश बैठे हैं
खामोश बैठे हैं
हर ख्वाब को सिरहाने रखकर,
अब कोई याद नहीं जगाती इनको।
चाहे कितनी ही भीड़ में शोर फैला हो ।
दूर तक, जब अँधेरा फैला हो
और हर किसी का आँचल मैला हो
तब भी एक डूबकी तो लगानी होगी सबको।
चाहे कितना भी समुंदर फैला हो ।
तनहा शायर हूँ यश।