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Madhu Gupta "अपराजिता"

Tragedy Classics Fantasy

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Tragedy Classics Fantasy

कभी-कभी

कभी-कभी

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कभी-कभी बेसबब,बे-धड़क बेमतलब

सुनसान राहों पर अकेले निकल जाना 

अच्छा लगता है।। 


ना होश अपना ना ख़बर हो ज़माने की 

बस नंगे पैर बिना आहत चलते जाना 

 अच्छा लगता है।। 


ना धड़कनों पे जोर न सांसों का कोई शोर

पलके बंद किया विरानो में चलते जाना

अच्छा लगता है।। 


जहाँ फूल और कांटे का ना हो फ़र्क महसूस

बस पैरों को लहू-लुहान करते जाना 

अच्छा लगता है।।


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