कैसे लिख दूँ वो दर्द
कैसे लिख दूँ वो दर्द
शब्द कोश में मिलते नहीं वो शब्द
जो मेरी पीर को स्पर्शने में माहिर हो,
"कैसे लिखूँ वो दर्द"
तेरे जाने के फैसले पर दिल की जो हालत है
रूह तू साथ ले चला बेजान जिस्म रह गया
रोती हर बज़्म मेरी रुठी हर तान है
मानों सर से साया ही उठ गया
बदन से खिंच गई खाल..
मोहब्बत ए महफ़िल से रौनकें रूठ गई
दिल की ज़मीन पर पड़ गया अकाल
बंद मुट्ठियाँ खोल गया तू
रेत सा कुछ फिसल गया
महक रह गई हाथों में
फूल तू सारे साथ ले गया..
संग तेरे जो हवाएँ गई एक लहर में सब बहा गई..
झिलमिलाते इश्क की लौ
पल भर में बुझा गया..
शहर ए दिल में बसती थी बस्ती
सूनी है गलियाँ सूने हर मोड़
रवानगी तेरी मेरा पता ही मिटा गई
रुपहले सपनो की सियासत लूट गई..
मौसम ए बहार में पतझड़ तू दे गया
उज़डे चमन सी बस विरानियाँ रह गईं।