कामुक
कामुक
जिस्मों-मज़ार पर सजदा किया करो,
तुम यूँ ही मुझे छुआ करो,
मैं दश्त-ओ-सेहरा को दिलकश नज़ारा कह दूंगी,
तुम यूँ ही कसमें दिया करो,
तुम्हारे मस्तक पर जो तिलक लगा है,
वो मेरा सिंदूर गिरा है,
साँसों की एक डोर बंधी है,
होंठों पर मुस्कान सजी है,
तुम्हारे बदन पर जो निशान लगा है,
उसपर मेरा नाम लिखा है।
तुम्हारे लबों ने स्पर्श किया,
मेरा अंग-अंग खिल गया,
आज तुमने मेरे तन की,
हर सिलवट को सहेजा है,
कितनी मेरी हसरतें हैं,
तुमने मुझे याद कराया,
मेरी ही सी अग्नि को,
तुमने साक्षात् कराया,
कैसे मेरी जलती देह को,
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सींचे तेरी काया है।
वसन वासना वचन वंचना,
कैसी रात यह आयी है,
पीने से भी न बुझे,
तूने ऐसी प्यास लगायी है,
पी लूँ हर घूँट तेरे मुख से,
ऐसी तलब जगाई है,
दिल में अगन तो कबसे थी,
अब हर अंग समायी है।
नग्न बदन पर नग्न सितारे,
गिनती जाऊँ पर खत्म न हों,
ऐसा मुझे नक्षत्र दिखाओ,
जिसका कभी दरस न हो,
पग में तेरे अर्जित कर दूँ,
सुन्दर पुष्प हज़ार,
तेरे नाम की मेहँदी से,
कर लूँ यह रक्त गुलज़ार,
समय रुक जाये, चलती जाये,
कामुकता की बरसात,
रोके से भी न रुके,
सुहाग की यह रात।