होली
होली
होलिका के देह से उठकर
ज्वाला विजय का प्रतीक बन
अब रंगों में अवतरित है हो रही
किंचित स्वास दमन के
अब विकीर्ण हो गए
सुधा आकाश से है बरस रही है
उठा नाद जब ढोल नगाड़े
उजली सुबह में गूंजने लगे
ललित प्रभा अब शोभायमान हो रही
किवारें कूद किशोर कोलाहल करें
करकर रोशन दिवस का आनन्
सब बालक अब रंगों से है खेल रहे
रंगोली गुजिया और भांग सजाकर
बैठे सभी झरोखों के पास
जल की तरंगें है आलम में फ़ैल रही
गलियों की मांग भर गयी मानो
जब सबने दिल के तार जोड़े
दूरियां सभी हैं मिट रही
पुष्प सा बरस रहा गुलाल
मिठाई और बधाई की श्रृंखला असीम
फिसलकर भी आज सब है हँस रहे
बालक छिपा था मन में सबके
अब लिहाज़ छोड़कर करे किलोल
प्रसन्नता मदिरा की तरह है चढ़ रही
दिवस यह शुभ आज सुशोभित हो आया
सबने खुशियों की मशाल जलाई
बुराई की होलिका पुनः भस्म हो रही
रंगों से सबका मन भर आया
सबने उत्साह से पर्व मनाया
हर साल यूँ ही आए होली।