आखिरी ख्वाहिश
आखिरी ख्वाहिश
वो गीत नहीं मेरी सांसें हैं
संभालना कहीं खो न जाएं
यह सांसें अब कुछ नाज़ुक हैं
खो गयीं तो न मिलेंगी
उखड़ी सांसों की रुत में
नींद कहाँ अब आती है
पाकर बंद मेरी आँखों को
अपने आप ही समझ जाना
जवान हुस्न में कभी न देखा
आनन उगते सूरज का
उन टीस से जलती आँखों में अब
उगते सूरज की आस रहती है
जवान हुस्न में याद नहीं
कहाँ गुज़ारी कितनी रातें
अब लगता है बेबसी में
हर श्याम आखरी है
मेरे रक्त से लिख देना
यादों के उन पन्नों पर
किंचित क्षणों की बेचैनी
में खत नहीं लिखे जाते
पार्थिव पढ़े मेरे शव को
कहना उन्हें ढूंढ लें आकर
पर आते वक्त वे भटक न जाये
उलझे बचपन की राहों पर
सर्व प्रथम नदी किनारे
हाथ जोड़कर बाएं मुड़ना
मुखर होकर ठाकुरबाड़ी से
दो दीपक जलाते आना
गाओं की त्यागी पगडंडियों पर
सूरज की सीध में चलते जाना
नतमस्तक होकर गुरु घर को
सभी पाप त्यागते आना
आकर घर पहले जुते उतारना
फिर तुलसी को जल चढ़ाना
भ्रमण करना और सुनना
दीवारों की उन बातों को
उड़ते हुए कपोत झरोखे कूद कर आएंगे
कुछ दाने रसोई से लेकर इन्हे बाँट देना
वहीँ कहीं हवाओं में
में तुम्हे मिलूंगा
दिख जाऊँ तो पैर छू लेना
वरना मिलूंगा उन गीतों में
पर कहना उनको ज़रा संभालें
मैले कुचले गीतों को
वो गीत नहीं मेरी सांसें हैं
संभालना कहीं खो न जायें।