मुझको मेरे स्वास लौटा दो
मुझको मेरे स्वास लौटा दो
मुझ तक मेरे स्वास प्रीतम
दे दो, दो पल ख़ास प्रीतम
देकर दिल पर दाग सदा के
ठहरो दो पल पास तो प्रीतम
मुझको मेरे स्वास लौटा दो
जूठा ही सही पर था वो वादा
हँसकर मैंने था वो माना
सत्य था वो अधरों का छुअन
सत्य ही थे वो जज़्बात प्रीतम
मुझको मेरे स्वास लौटा दो
आकर देखो तन क्यों जलता है
तुम्हारे दिए घाव ही होंगे
सराबोर तुम्हारे बदन ने दिए जो दाग ही होंगे
तप्त मेरे तन से वाष्पित हुआ वो स्वेद प्रीतम
मुझको मेरे स्वास लौटा दो
नाजायज़ ही सही मेरी प्रीत अनघ थी
तेरी अगन एक रोग है प्रीतम
पर भय बिरह का मन भटकाए
तन्हाई से भला यह पाप है प्रीतम
मुझको मेरे स्वास लौटा दो।