जरूरत अपनी अपनी
जरूरत अपनी अपनी


तेरी तरफ आते हुए
मेरा हर एक लफ्ज अब चुभने लगा है
अब शायद शहद भी जहर बनने लगा है
कोई नहीं
मुझे यकीं है खुद पर
एक दिन सब कुछ अच्छा लगने लगेगा
किसकी राह देखते हो
जिन्हें जाना था वो पहले ही जा चुके हैं
और आने वाले तुमसे कुछ न पूछेंगे
तुम भी अपने लिए
रस्ते को तय करो क्योंकि
तुम भविष्य का निर्माण इन्हीं
रास्तों पर चलकर करोगे ।
बात नहीं करनी है
तो न ही सही
पर हम से खफ़ा का कोई
नया इल्म तो सोचो
फलक पर चाँद सजे या न सजे
पर चकोर को हमेशा
अपने चांद का इंतजार तो रहता है
चोटी पर पहुंचकर
शायद ये जमीं नजर न आये
बुलंदियों को छूकर
शायद चोटी भी याद न आये
ये दुनियां की जरूरत है साहब
किसको याद करना है
और किसको भूलना है
उसे बड़े अच्छे से पता है
चाँद नगर में रहने वाले
कभी चाँद बनकर तो देखो
चंदा को भी शीतल बनना
कितना मुश्किल है उससे पूछो ?
सूरज की हर रोज आग में
जलना तपना पड़ता है
इन सब स्थितियों में रहे वो
चंदा बन छा जाता है