जरा सी हाँ
जरा सी हाँ
दिन ये जो ढले नहीं तो रात न जवान हो,
चाँद के माथे पे न सूरज के ये निशान हो !
चुनर ले सितारों की सिर पे आसमाँ उठा लिया,
नज़र से कर रही इधर किस अस्त्र का संधान हो !
धूप में जो जल चुका उसे अब छाँव चाहिये,
कह भी दो जरा सी हाँ न चाहतें वीरान हो !
लहर उठी यहाँ अभी बिखर तो जायेगी कभी,
पर न जाने ठोकरों में कितनी बे-जुबान हो !