जन्नत
जन्नत
मारकीन कपड़े जैसी पतली साड़ी
फटी ब्लाउज पहन रखी थी
जेठ दुपहरी में
धूप से बचने के ख़ातिर
माथे पर सूप ले रखी थी
रुग्ण काया बिन चप्पल पांव
अश्रु पूरित नेत्रों से ताक रही थी
हर एक आने जाने वाले बस को
बेसब्री से झांक रही थी ।
आँचल में कुछ मुढ़ी थी
और लोटा में पानी लायी थी
बच्चे को भूख लग गयी होगी
शायद यही सोच खाने को लायी थी।
बड़ी लार-प्यार से पाली पोसी
दाई का काम कर उसे पढ़ाई थी
कहीं कदम न बहके इसका इसलिए
नीति की भी पाठ पढ़ाई थी
पिछले ही महीने मिली है नौकरी
आज पहली तनख्वाह लेकर
बेटा को घर आना था
साहब को मिली थी सरकारी गाड़ी
तो फिर बस से कहाँ आना था ।
जैसे ही चौराहे पर कार लगी
अंग रक्षक ने उसे घेर ली
दृश्य देख माँ का जी घबराया
हो हतप्रद वो चिल्ला उठी
सोच अनहोनी की आशंका
हाँफते-काँपते माँ
सुरक्षा घेरे में जा घुसी
दोनों हाथ जोड़ अंग रक्षक से
बेटे को छोड़ देने की
मिन्नत करने लगी
देख माजरा
बेटा सब कुछ समझ गया
तुरंत अंग रक्षक को
मुख्यालय वापस किया
चैन की साँस ली माँ ने
भास्कर को प्रणाम की
लाल के माथे आँचल रख
घर की ओर पैदल ही प्रस्थान की ।
कूल देवता की पूजा कर
बेटे को सबसे पहले खाना दी
फिर इधर उधर की बात कर
नैतिकता की कुछ सीख दी।
टुटी खाट पर माँ बैठी है
बेटा बैठा है कदमों में
खुशी की आँसू है माँ की नेत्रों में
बेटे की आँखें भी कुछ नम है
देख अपनी अनुपम कृति
खुदा भी दिल खोल मुस्काया है
माँ की चरणों में ही जन्नत है
खुदा ने आज फिर से हमें समझाया है।।
