जख्म खाते रहे मुस्कुराते रहे
जख्म खाते रहे मुस्कुराते रहे
रस्म जीने की हम यू निभाते गए
जख्म खाते रहे मुस्कुराते रहे
जान जाए न जमाना दर्द दिल का मेरे
अश्क आखों में अपनी छुपाते रहे
मिली न मोहब्बत जहाँ से हमें
हम मोहब्बत जहाँ में लुटाते रहे
नफरतों के मिया इस दौर में
हम मोहब्बत की गंगा बहाते रहे
जिन्दगी में मिली तन्हाई हमें
महफिलें ख्बाब में हम सजाते रहे।
