जिस्म
जिस्म
देह के झरोखे से
रूह झांक झांक कर
देखती है;
मिलन की बेसबब
यादों के मुलायम
घरोंदों को;
आँखों के पोरों में
मोतियों का मनके
भर आते है;
फिर पाबंदियां वक़्त
कि और रवायतें ज़माने
की तकलीफ देती है;
ऊपर से हर्फों की
अहमियत भी अपने
मायने खोने लगती है;
तब फरेबी ये जिस्म
रिश्ते तोड़ने पर उतारू
हो जाता है !