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S Ram Verma

Abstract

4.5  

S Ram Verma

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जिस्म

जिस्म

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देह के झरोखे से 

रूह झांक झांक कर 

देखती है;

मिलन की बेसबब 

यादों के मुलायम 

घरोंदों को;

आँखों के पोरों में  

मोतियों का मनके 

भर आते है;

फिर पाबंदियां वक़्त 

कि और रवायतें ज़माने 

की तकलीफ देती है;

ऊपर से हर्फों की 

अहमियत भी अपने 

मायने खोने लगती है;

तब फरेबी ये जिस्म 

रिश्ते तोड़ने पर उतारू 

हो जाता है !


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