जिंदगी
जिंदगी
रोशन कहाँ रह पाया है आंधियो मे चिराग
गम-ए-ज़िन्दगी में टूट के बिखर जाता है।
जानता नहीं कहाँ जिंदगी की शाम हो जाये
सोच कर ये एक सन्नाटा क्यों पसर जाता है।
साहिल पर किश्ती को आकर डूबते देखा है
देख कर ये मंजर दिल-ए-नादां सहम जाता है।
फितरत वक़्त की है वो नहीं ठहरा है कहीं
इंतिजारी में तुम्हारे ये क्यों ठहर जाता है।
गम सह चुके जिंदगी में बहुत अब तलक हम
सफर ये अनजान ले कर अब किधर जाता है।
हौसला गर हो आगोश में तूफान लेने का
दर्द मे भी खिल कर वो निखर जाता है।
खुद को वो खुदा समझने की भूल कर बैठे
वक़्त की आँधियों में कौन ठहर पाता है।
