जिंदगी की होड़
जिंदगी की होड़


जिंदा रहने की कश्मकश में
जी रहा है आदमी।
जिंदा रहने की होड़ में
दौड़ रहा है आदमी।
जिंदगी को दाँव से बचाने के लिये,
जिंदगी का दाँव खेल रहा है आदमी।
शतरंज की तरह चारों ओर बिछी है मौत,
मात देता हुआ उसे जीत रहा है आदमी।
जीवन की सच्चाई है मौत
और मौत को झुठला रहा है आदमी।
बेशकीमती है जींदगी
जींदगी की किम्मत लगा रहा है आदमी।