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Khushbu Tomar

Tragedy Inspirational

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Khushbu Tomar

Tragedy Inspirational

ज़िंदगी का अनचाहा लम्हा

ज़िंदगी का अनचाहा लम्हा

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कुछ पतझड़ की पीली पत्तियाँ थे जो झड़ गए 

कुछ कोंपल है प्यारी पर पनप न पाए

कुछ जड़ सी मज़बूत है यादों में

कुछ लम्हे एसे जिनका कांरबा ख़त्म ही न हुआ


आज वो एक पीला पत्ता तोड़ना चाहती हूँ

ग़र लम्हा ख़ुशनुमा हो तो सहेजना भाता है

जब अनचाहा हो तो उकेरना चाहता है


उस बुरी याद का क्या बखान करूँ 

जिस पल सुना तबियत नासाज़ है

उस लम्हे को कैसे बयान करू 


सामने बैठा डाक्टर यमदूत सा लग रहा था

फ़र्क़ इतना तो ही था कि बचने की नहीं मरने की रशीद लिख रहा था

सच तो ये है उस पर भी यक़ीन मेरा दिल नहीं कर रहा था

न जाने क्यों सारा जहां बेवजह ही घबरा रहा था


माँ साथ थी,ज़ुंबा उनकी लड़खड़ा सी रही थी

पर मजाल मेरी आँखें उन्हें उस वक़्त देखना भी चाह रही थी

दिल में उधेड़बुन सी थी क्या पता कोई ग़लतफ़हमी हो

मुझे कैंसर हो ये लाज़मी ही न हो


उस लम्हे के बाद जब जान बचाने

उम्मीद से ले गए मुझे दुबारा दिखाने

सफ़र कुछ लम्बा सा हो गया

काश मंज़िल खूबसूरत हो ये सोच सोच मन है बैठ गया


इस बार ये यमदूत भगवान बन जाए

बचाले मुझे मेरी जान न ले जाए

मेरी ज़िंदगी की मुसाफ़िर थी अब तलक 

आज रास्ता धुंधला सा हो गया

सपनों की नैया डगमगाने सी लगी

अरे क्या कहूँ बस चंद महीनों पहले मेरी शादी जो हुई 

शादी की आभा चेहरे से,चिंता की चिता में जल गई 


दिल की धड़कन कानों तक आ गई 

मेरे आगे मेरी मौत की तस्वीर छा गई 

आँसू सबके देख फिर भी न रोना चाह रही

अरे कुछ हुआ ही नहीं तो फिर क्यों घबरा रही


जब इस तकलीफ़ से गुजर कर नए दौर में आई

तो लगा कठिनाई ही है जिसने मुझे मेरी आत्मा 

को मज़बूती दिलाई

ये वक़्त ही मुसाफ़िर को मुज़फ़्फ़र तक का सफ़र है तय करवाता

पर उस सच को सुनना कोई नहीं चाहता

झूठ ही कहो क्यों कि एसा कोई लम्हा हमें नहीं भाता

 ख़ता किसी की नहीं पर भुगतना सबको है

ज़हर का घूँट चखना हम सबको है।


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