Revolutionize India's governance. Click now to secure 'Factory Resets of Governance Rules'—A business plan for a healthy and robust democracy, with a potential to reduce taxes.
Revolutionize India's governance. Click now to secure 'Factory Resets of Governance Rules'—A business plan for a healthy and robust democracy, with a potential to reduce taxes.

khushbu singh Tomar

Tragedy

4.8  

khushbu singh Tomar

Tragedy

हम साथ नहीं दे पाते

हम साथ नहीं दे पाते

1 min
417


पैसा ख़ाक है साहब जो दुख दूर न कर पाए

औलाद बेकार है गर माँ बाप को ख़ुश न कर पाए 

माना कि आगे बढ़ना ज़रूरी है पर

अकेले रहना क्या मजबूरी है।


ये कैसी तरक़्क़ी हो चली है

माँ बाप अकेले पत्नी साथ चली है

ग़लती नहीं किसी की इसमें रीत ही बनी है

अब वो खेत नहीं है वो गाँव नहीं है।


पर रोता है दिल सोचकर

कितना दर्द होगा उस तन पर

अकेलापन और बीमार देह

उस पर भी ख़ुशियों का संदेह।


बुढ़ापा पैसे से मिटा नहीं सकते

चाहकर भी हम पास रह नहीं सकते

माँ को उपहार देकर ख़ुश करते हैं

पर पैरों का दर्द मिटा नहीं पाते।


बाप को पैसे तो देते है पर चिंता दूर कर नहीं पाते

मजबूर है हम साथ रह नहीं पाते

पैसा बेहिसाब है पर दर्द पर किसका ज़ोर है

अरे संतान बेजोड़ है पर अकेलापन का क्यों शोर है

सब कुछ है फिर भी कुछ ख़ाली है कुछ दूर है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy